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औलक (वियतनाम) में एक कहानी थी - मैं उस नन के पास वापस जाती हूँ जिसने मुझे यह कहानी सुनाई थी। एक कहानी थी कि वहां एक नया मंदिर बना था, जो उत्तम, सुंदर और स्वच्छ था। और अनेक युवा पुरुष, उच्च आदर्शों और महान आकांक्षाओं के साथ, भिक्षु बनने के लिए आये। लेकिन बहुत से लोग उस मंदिर में आये और बहुत सारा, बहुत अच्छी भेंट चढ़ायी – बहुत अच्छी, बहुत अच्छी। और तब मंदिर के मठाधीश ने इन भिक्षुओं से कहा, "ओह, आप तो चॉपिंग बोर्ड हो।" और वे चाकू हैं। यदि आप वास्तव में जारी नहीं रखते हैं, ईमानदारी से अभ्यास नहीं करते हैं, तो वे आपको तब तक काटेंगे जब तक आपके पास कुछ भी नहीं बचेगा।” और इसके बाद, बहुत समय बाद, सभी भिक्षु पुनः गृहस्थ जीवन में लौट आए, विवाह कर लिया और उनके बच्चे, परिवार आदि हो गए। यह एक सच्ची कहानी है जो मेरी नन शिक्षिका ने मुझे बताई थी।इसीलिए मैंने आपसे कहा कि उन्होंने मुझे चीजें सिखाईं, उन्होंने मुझे कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने मुझसे यह भी कहा, "सावधान रहना, शरणार्थी शिविर में उस छोटे से कमरे में अकेले मत रहना।" लेकिन मुझे करना पड़ा। मेरे पास रहने के वाला कोई नहीं था। मैं अकेले रहना पसंद करती हूं। मैंने पूछा, “क्यों?” और उन्होंने कहा, “ओह, भूत, उनमें से कई, हमेशा खाली शौचालय में चले जाते हैं और रात में भी वहीं बैठते हैं।” मैंने कहा, “मुझे तो कोई नहीं दिख रहा।” या शायद बुद्ध ने मेरी आंखें अंधी कर दी हैं, ताकि मुझे डर न लगे, या बुद्ध ने उन्हें बाहर फेंक दिया है ताकि वे मुझे डरा न सकें। इसलिए मैं वहीं रहने लगी।वह भूत देख सकती है और वह यह भी देख सकती है कि आप क्या सोच रहे हैं, क्या महसूस भी करते हैं। उनके पास यह मानसिक शक्ति, दिव्यदृष्टि, पूर्णतः तो नहीं, किन्तु आंशिक रूप से है।और एक अन्य भिक्षु भी एक शरणार्थी शिविर में था, जो एक और अधिक निजी शिविर था, अन्य औलासी (वियतनामी) शरणार्थियों के साथ एक निजी इमारत में था। उन्होंने मेरा भविष्य जान लिया था। उन्होंने कहा कि मैं विश्व प्रसिद्ध हो जाऊंगी। मैं आध्यात्मिक रूप से बहुत महान हो जाऊंगी। उन्होंने मुझे बस इतना ही बताया। और उस समय, मुझे लगा कि वह बहुत दयालु हैं, क्योंकि मैं एक बहुत ही समर्पित बौद्ध थी। मैंने भिक्षुओं को दान दिया और कई भिक्षु और भिक्षुणियाँ मेरे घर भी आये। और मैंने उनके साथ बुद्ध जैसा व्यवहार किया। बेशक, मैंने उन्हें बुद्ध नहीं कहा। मैं उन्हें मास्टर यह और वह कहकर पुकारती थी। और मैंने खुद को “आपका बच्चा” कहकर संबोधित किया। औलक (वियतनाम) में हम सिर्फ एक को ही “मास्टर” नहीं कहते हैं। मास्टर का अर्थ है "सुर" और "फ़ू" का अर्थ है पिता या माता। या, यदि कोई नन है, तो आप उन्हें “सु को” कहते हैं, जिसका अर्थ है “आंटी मास्टर,” और “सु फ़ू” का अर्थ है “पिता मास्टर।” और आप खुद को “बच्चा”, “आपका बच्चा” कहकर संबोधित करते हैं।ओह, मैंने बहुत सारी चीजों के बारे में बात की। मुझे आशा है कि आप उन सभी को पचा सकेंगे। कोई बात नहीं। आप कभी नहीं जानते कि मुझे आपको यह बताने का मौका कब नहीं मिलेगा। मैं अपने हर दिन को अपना अंतिम दिन मानती हूँ। इसलिए मैं जो भी कर सकती हूं, वह करती हूं। और यदि आप में से कुछ लोग नहीं सुनते, विश्वास नहीं करते, तो ऐसे अन्य लोग भी हैं जो सुन सकते हैं, विश्वास कर सकते हैं, और स्वयं अपनी आत्मा को बचा सकते हैं, और अधिक गुणवान, अधिक नैतिक बन सकते हैं, एक वास्तविक मानव बनने के लिए अधिक योग्य बन सकते हैं, साथ ही समाज को अधिक सुरक्षित बना सकते हैं, रहने के लिए अधिक सुरक्षित बना सकते हैं, और साथ ही उनकी आत्मा शुद्ध हो जाएगी और यह उनके लिए भी बेहतर होगा। तो मैं बस बोलती हूं, और जो कोई भी सुनता है, सुनता है। उनके लिए अच्छा है। जो भी कोई नहीं सुनता, मैं वैसे भी नहीं जानती। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए, इसलिए मुझे कुछ भी खोने का डर नहीं है। यदि मेरे किसी शब्द से आपको मदद मिलती है, तो आप ईश्वर को धन्यवाद दीजिए, सभी बुद्धों को, सभी मास्टर्ज़ को धन्यवाद दीजिए। आपको मुझे धन्यवाद देने की कोई जरुरत नहीं है। उन्होंने मुझे प्रेरित किया, और किसी भी बातचीत से पहले, मैं हमेशा प्रार्थना करती हूँ, उनकी स्तुति करती हूँ कि वे मेरे माध्यम से बात करें, “मुझे केवल सांसारिक मानक या अहंकार से बात करने न दें।”मैं किसी भी बातचीत को अपनी असली बातचीत नहीं मानती। कभी-कभी मैं कुछ मानवीय मानकों पर बात करती हूं, मज़ाक़ करती हूं और ऐसी ही अन्य बातें, लेकिन मैं यह नहीं मानती कि मैं वास्तव में किसी को कुछ सिखा रही हूं। मैं हमेशा ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे दूसरों के लिए लाभदायक बातों के बारे में बात करने की अनुमति दी है। और यहां तक कि पशु-मानव भी, सुनते हैं। दूर से उनकी आत्माएं सुन सकती हैं।पशु-लोग मेरे प्रति बहुत दयालु हैं। मैं जहां भी जाती हूं, पक्षी-लोग आकर मुझे यह-वह बताते हैं। जब मैं संसार या हर चीज के लिए चिंतित होती हूं, तो वे आकर मुझे अच्छी खबरें सुनाते हैं, लेकिन मैं आपको नहीं बता सकती। जब वह आएँगी, तब आपको पता चल जाएगा। यहां तक कि चूहे-लोग और वह सब भी।एक बार, मैं शहर में नहीं, बल्कि एक उपनगर में रुकी थी, जिसके आसपास अन्य घर भी थे। और मैंने चूहे-लोगों को खाना खिलाया। मैंने पक्षी-लोगों को खाना खिलाया, लेकिन चूहे-लोग भी आ गए और साथ में खाना खाया। पड़ोसियों ने यह देखा, तो उन्होंने इसकी सूचना अधिकारियों को दी। और उन्होंने मुझे एक पत्र लिखा। उन्होंने मुझे डांटा या कुछ भी नहीं। वे बहुत अच्छे और विनम्र थे। उन्होंने कहा, "उन्हें खाना मत खिलाओ, क्योंकि चूहे-लोग आएंगे और खाएंगे, और चूहे आपको और आपके पड़ोसियों को बीमार कर सकते हैं।" इसलिए कृपया उन्हें खाना न खिलाएं।” क्योंकि अगर मैं उन्हें खाना खिलाती रही तो वे परेशानी खड़ी कर देंगे। यह तो पक्का है। पहले, वे विनम्र होते हैं और आपको अच्छे से पत्र लिखते हैं, लेकिन बाद में वे परेशानी खड़ी कर देते हैं। आप पर जुर्माना लगाया जा सकता है या आपको जेल भी हो सकती है, जो भी हो, निर्भर करता है। मुझे देश के कानूनों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। मैं बहुत अधिक कानून नहीं जान सकती। इसलिए, मैंने उन्हें खाना खिलाना बंद कर दिया।और मैंने अपने आस-पास के सभी पक्षी-लोगों और चूहे-लोगों से बहुत क्षमा कहा। और मैं उनसे पूछती रही कि क्या वे ठीक हैं? उन्होंने कहा कि वे ठीक हैं। सीगल-लोगों की तरह, वे आमतौर पर मछली-लोगों को खाना पसंद नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि यह बदबूदार है। लेकिन इसके बाद, अगर मैं उन्हें खाना नहीं खिलाऊंगी, तो वे उन्हें खा लेंगे। हे भगवान, मुझे बहुत दुःख है। मेरा दिल लगभग टूट गया है। और फिर मैंने कहा, “लेकिन आप ठीक हैं?” उन्होंने कहा, "हां, हम ठीक हैं।" चिंता मत करो।" और चूहे-लोगों, मैंने चूहों से भी पूछा, “अब क्या करें? आप हर रोज़ आराम से खाना खाने के लिए आते हैं। और अब आप क्या कर सकते हैं? क्या आपने खाना खाया?" उन्होंने कहा, "चिंता मत करो। हम भोजन ढूंढ लेंगे। हम जानते हैं। हम अपना ख्याल खुद रख सकते हैं।” और लोमड़ी-लोगों ने भी मुझे बहुत प्यार से ऐसी ही बातें बताईं और मुझे उन्हें खाना न देने के लिए दोषी ठहराने के बजाय मुझे सांत्वना देने की कोशिश की। लेकिन मुझे हमेशा दुःख ही महसूस हुआ।लेकिन समाज में, जिस देश में आप रहते हैं, चाहे वह आपका अपना देश हो या न हो, आपको कानून का सम्मान करना ही होगा। यदि आप पहले से ही कानून जानते हैं, तो आपको उसका सम्मान करना होगा। जब तक आपको पता न हो, और अनजाने में आप कुछ गलत न कर बैठें, तब तक आपको सजा भुगतनी ही पड़ेगी। उसके बाद, मुझे बहुत दुःख हुआ। मुझे अभी भी हर समय दुःख होता है। लेकिन मैं कहीं और चली गयी, और वे अभी भी मेरे पास आते हैं और मुझसे बात करते हैं। वे अभी भी मुझसे कहते हैं, “ओह, क्या यह अच्छा है, क्या यह अच्छा है?” या “इससे सावधान रहो, उससे सावधान रहो।” मैं जहां भी जाती हूं, वे वहां आ जाते हैं, भले ही मैं उन्हें खाना न खिलाती हूँ। तो, मैं जहां भी जाती हूं, अगर मैं देखती हूं कि लोग किसी तरह पक्षी(-लोगों) और चूहे(-लोगों) को खाना खिलाते हैं, क्योंकि उनके पास बड़ा बगीचा है, वे अधिक निजी तौर पर रहते हैं, वे उन्हें खाना खिला सकते हैं, ओह, मैं बहुत खुश हूं, बहुत खुश हूं। और मैं उनकी भलाई की कामना करती हूं। मैं कहती हूँ, “भगवान आपको आशीर्वाद दें, भगवान आपको आशीर्वाद दें,” और वह सब।लेकिन आप देखिए, दुनिया में हमारे पास सांसारिक कानून हैं। अतः ब्रह्माण्ड में भी, सार्वभौमिक नियम हैं। जीवित रहने के लिए हमें सभी कानूनों का पालन करना होगा। लेकिन यदि आपकी आत्मा पहले ही मुक्त हो चुकी है, आप अपने असली घर - बुद्ध की भूमि, स्वर्ग के घर - में आ गए हैं, तो आपको किसी भी चीज़ के बारे में चिंता करने या डरने की आवश्यकता नहीं है। उनके पास ऐसे कोई कानून नहीं हैं। उनके पास कोई शब्दकोष नहीं है जिसमें लिखा हो "पीड़ा" या "दर्द" या "नियम" या "कानून", कुछ भी नहीं। क्योंकि सभी लोग स्वर्ग में रहते हैं, बुद्ध की भूमि में। सब कुछ अच्छा, आनंदमय और हर समय खुशनुमा है। आपको बस घूमना है या अपने पड़ोसियों से मिलना है, या बुद्ध की पूजा करनी है, भोजन करना है, और आपको पैदल चलने या बस में जाने की भी आवश्यकता नहीं है। आप बस उड़ते हो। उदाहरण के लिए, आप बस बादल पर चलते हैं। यह निर्भर करता है कि आप किस भूमि पर हैं। या फिर आपके पेट पर एक बेल्ट लगी है और आप बस एक बटन दबाते हैं और आप सुरक्षित रूप से, धीरे-धीरे उड़ जाते हैं, जैसे कि आप हवा में चल रहे हों। या आप बादल पर चल रहे हैं और बादल को बताते हैं कि आप कहां जाना चाहते हैं, और फिर वह आपको वहां ले जाएगा।और आपके पास घर हैं। हर एक के पास एक बड़ा घर है। दुनिया का सबसे बड़ा घर भी बुद्ध की भूमि में आपके घर जितना बड़ा नहीं है - उदाहरण के लिए, अमिताभ बुद्ध की भूमि। ऐसा लगता है जैसे आप कमल के फूल पर हैं। लेकिन वह फूल तो फूल का आकार है, लेकिन वह आपका घर है! बड़े फूल, तो यह किसी छोटे कमल या छोटे घर जैसा भी नहीं है, बल्कि महान है, क्योंकि आप वहां भी बड़े हैं, और आपको स्थान की आवश्यकता होती है। आपको उस घर की भी जरूरत नहीं है। बस हर किसी को एक दिया जाता है ताकि आप वहां बैठकर ध्यान कर सकें और आपको किसी भी चीज से परेशानी न हो। ऐसी भूमि में आपको केवल आनंद और प्रसन्नता ही मिलती है। आप जो भी चाहेंगे वह स्वतः ही आपके पास आ जायेगा। आप किसी भी चीज के बारे में सोचते हैं और फिर वह सामने आ जाती है। लेकिन आप वैसे भी वहां बहुत ज्यादा नहीं चाहते हैं। जो भी हो - आप बस संतुष्ट महसूस करते हैं, और आपको जो भी चाहिए, बहुत सरल है, वह आपके पास आता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको क्या चाहिए।और वहां के सभी पक्षी(-लोग) और पशु-लोग सुंदर हैं, उनके चारों ओर प्रकाश है, और वे गाते हैं। वे सभी को अभ्यास करने और उच्च स्थान पर जाने की याद दिलाते हैं। शायद नहीं क्योंकि आपको बुद्ध या कुछ और बनना है। बात इतना है कि अगर आप एक बुद्ध हैं, तो आपको अच्छा लगता है, आप अपनी उपलब्धि के बारे में बेहतर महसूस करते हैं। और फिर आप दूसरों की मदद कर सकते हैं, जैसे कि आपके रिश्तेदार और दोस्त जो अभी भी इस दुख भरी दुनिया में या यहां तक कि नरक में रह गए हैं। अधिकतर, यदि आप चेतना का उच्चतर स्तर प्राप्त कर लेते हैं, तो आपके कुल, आपके परिवार की कई पीढ़ियाँ भी मुक्त हो जाएँगी, नरक में नहीं जाएँगी। लेकिन शायद उनमें से कुछ या कई ने बौद्ध धर्म का पालन नहीं किया हो या ईसा मसीह या अन्य मास्टर्ज़ का अनुसरण नहीं किया हो, बुरे काम किए हों, और फिर उन्हें नरक में दंडित होना पड़ा हो। और फिर बुद्ध की भूमि से, आप स्वर्ग, पृथ्वी और नरक को देख सकते हैं, और आप देख सकते हैं कि शायद आपका कोई रिश्तेदार या परिवार का सदस्य, या यहाँ तक कि आपके पिता, माता भी नरक में कष्ट झेल रहे हैं। तब आप नीचे आ सकते हैं और उनकी मदद करने के लिए बलिदान दे सकते हैं।Photo Caption: इस क्षणभंगुर दुनिया में सुनहरा समय दुर्लभ है जब तक है इसका आनंद लें